" आत्मा की प्रकृति ....."
आत्मा , शरीर , मन , दिमाग़ , प्रकृति , पञ्च तत्त्व , ब्रह्म और इश्वर ... ये सारे तत्त्व हमेशा हमारे लिए रहस्य का विषय बने रहते हैं .. संसार की विचित्र अवधारणा और अवमानना के पृष्ट पर हमेशा एक अधूरा सा सच हमे कचोट कर ग़ुमराह करता रहता है ... कुछ अजीब सा लगता है ये सुनने और समझने में ... मग़र यही सत्य है कि हम वही जान पाते हैं जो हमे इश्वर बताना चाहता है ... हर व्यक्ति का कर्म और नियति पहले से तय है ... मग़र दुनियाँ इस क़दर एक विरोधाभास में फँसी हुयी है कि आँखें खुली भी हैं और कुछ दिखायी भी नहीं देता ... मुझे ज़्यादा नहीं पता कि सच क्या है ..? मग़र एहसास है कि कुछ है जो हमे अपनी ओर खींचता है मग़र हम अपनी इच्छाओं की परतों से निकल कर बाहर ही नहीं आ पाते .. कर्म कैसा भी हो सच्चा या झूठा ... अच्छा या बुरा .. या किसी तपस्या में लीन एक संत का व्यवहार ... मग़र सब कहीं ना कहीं स्वार्थ से ढका हुआ है ... मैं भी स्वार्थी हूँ ... क्योंकि मुझे भी एक अच्छा इंसान बनना है ... मेरे अच्छा इंसान बनने का स्वार्थ मेरा पीछा कभी नहीं छोड़ता ... इच्छा मोक्ष की हो या कोई अपराध करने की ... बात वही है कि इच्छा ज़िन्दा है ... हर दान से पहले इंसान उस पर अपना नाम लिखना चाहता है ... मग़र क्यों ...? अपना संतुलन बनाने के लिए या अपने कर्म सुधारने के लिए ... इसका जवाब मुझे आज तक नहीं मिला कि हम सच में यहाँ क्यों हैं ... और क्या मक़सद है हमारे इस धरती पर होने का ...!
क्या है ये आत्मा की प्रकृति …. ?
हर जन्म हर मृत्यु पर सबसे पहले आत्मा का ही ज़िक्र होता है ... जन्म हुआ तो इसकी आत्मा पहले क्या थी और कहाँ थी , ये अपने साथ क्या लायी है और इसके इस दुनियाँ में आने की वजह क्या है , और अब क्या कर्म होगा इसका इस संसार में ....
और मृत्यु के वक़्त कहा जाता है कि इसकी आत्मा अब कहाँ जायेगी ... स्वर्ग मिलेगा या नरक भोगेगी ये आत्मा और फिर से इसका जन्म कहाँ होगा .... मैं इस बात को थोड़ा घुमा कर कह रहा हूँ ... क्योंकि मैंने हमेशा से एक आम बात ही होते देखी है हम इंसानों के बीच ... मग़र कभी आत्मा के स्वरुप को नहीं जान पाया ... अब तक कई महापुरुषों ने बहुत सी बातें कही हैं इस विषय पर ... मग़र सच में आत्मा क्या है ...? एक धुंध , एक ऊर्जा , एक शक्ति , एक इश्वर या कोई भ्रम ... मग़र ये कम से कम भ्रम तो नहीं है ... इतना मुझे समझ आ गया है ... बस अब जो आत्मा मुझसे कह रही है मैं वही कर रहा हूँ ... शायद इस विषय पर चर्चा करने की हिम्मत भी मुझे मेरी आत्मा से ही मिली है ...!
आत्मा के स्वरुप का कौनसा ऐसा सच है जो हम कभी नहीं जान पाते … मग़र इस सच को जानने की कोशिश हमेशा करते रहते हैं
आत्मा के अनुकूल आत्मा का व्यवहार मानव चरित्र का एक विचित्र भाग है … कभी कभी हम वो बातें भी जान जाते हैं जो ना तो हम सोचते हैं और ना ही कभी हमने वो देखा और किया होता है ... और किस तरह हम अपने साथ दूसरी आत्माओं को जोड़ कर अपने सफ़र को अपने अनुकूल बना लेते हैं ... बस यही एक चमत्कार सा लगता है कि सब सामने होते हुए दिख रहा है मग़र सब एक दम सच से परे नज़र आता है ... हर इन्सान की अपनी एक अलग दुनियाँ अपना एक अलग व्यक्तित्व मग़र सब इसी दुनियाँ में एक साथ भ्रम का शिकार होते हुए नज़र आते हैं ... हर व्यक्ति ख़ुद को सही करने की ज़िद में जुटा हुआ है ... कभी पंचतत्वों के प्रभाव में कभी इश्वर के स्वभाव में तो कभी इस माया रुपी संसार के रिझाव में हम सब अपने अपने ढंग से आत्मा को समझने का प्रयास करते हैं ..... !
शायद इन्सान के मन और चित्त की शक्ति हमेशा इस उलझन में रहती है कि आख़िरकार ये आत्मा का स्वरुप और अस्तित्व क्या है जो की उसके व्यवहार से उजागर होता है ….?
जब मन किसी बात को मानने से इन्कार कर दे ... तो चित्त स्वतः ही बेचैन हो जाता है ….
और उस वक़्त चित्त की पारदर्शी शक्ति मन के बहाव में आ कर क्षीण हो जाती है … क्योंकि मन हमेशा चंचल स्वभाव में रहता है …वो चित्त की स्थिरता को समझना ही नहीं चाहता ... इसलिए हम कभी अपनी आत्मा की आवाज़ को पहचान ही नहीं पाते … जिसे हम आत्मज्ञान समझ लेते हैं दरअसल वो हमारी ही रची हुई माया का भ्रम होता है ... क्योंकि आत्मा का कोई आरम्भ और अंत नहीं है ... मग़र हम हमेशा ख़ुद को समझदार साबित करने के आवेश में आत्मा को अनंत से निकाल कर आरम्भ और अंत से जोड़ने की कोशिश में लग जाते हैं
अगर हम मन और चित्त को एक साथ समझने की कोशिश करें तो शायद हम सही मायनों में जान पायेंगे कि हमारी आत्मा हमसे क्या कहना चाहती है .... मन का ओझल ज्ञान और चित्त की पारदर्शिता … दोनों कभी आपस में नहीं मिल पाते … मग़र हम चाहें तो मन को एक सही दिशा दे कर अपने चित्त की अनुकूलित अवस्था को जानते हुए अपनी आत्मा से बात कर सकते हैं …
चूँकि हम हमेशा कल्पना और हक़ीक़त के घेरे में घिरे रहते हैं …. इसलिए कभी अन्तरात्मा का ज्ञान हमे स्पर्श ही नहीं कर पाता … और अगर कभी इस बात का ज्ञान होता भी है तो हम उस वक़्त उस ज्ञान को समझ नहीं पाते … क्योंकि हमने कभी इस तरह का अनुभव पहले किया ही नहीं होता ... लेकिन अगर हम बार बार अपनी आंतरिक ऊर्जा को चित्त के सम्पर्क में लायें तो संभवतः एक दिन स्वयं को और अपनी आत्मा को समझ सकते हैं ... नहीं तो हम भी एक आम उदासीन ज़िन्दगी की ही तरह साधारण जीवन बिताते हुए इस दुनियाँ को बिना कुछ दिए चले जायेंगे ….!
हम जो भी वर्त्तमान जीवन में करते हैं या करने का सोचते हैं … वो शायद कहीं ना कहीं पहले से लिखा हुआ है … जो हम देख नहीं पाते … मगर जो भी पहले से लिखा है वो सच हमे बार बार वही करने को कहता है … जिसके लिए हमारा जनम हुआ है ... लेकिन हम हैं कि अपने अन्दर कभी झाँक कर देखते ही नहीं कि हमारा जन्म क्यों और किस उद्देश्य के लिए हुआ है …..
जो जैसा बोल दे या जो हम दूसरों के अनुभव देख कर करें और या किसी की होड़ में हम हों ... बस वही काम ज़्यादातर हम लोग करते हैं … लेकिन अपना वास्तविक कर्म कभी नहीं जान पाते … और हाँ ... जो जान जाते हैं कि उनका असली मक़सद क्या है इस दुनियाँ में आने का … वो सच में एक दिन इस दुनियाँ को कुछ ना कुछ नया दे कर जाते हैं … अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी …..!
मग़र ज़रूरी नहीं है कि हम ऐसा कर पायें ...............................................!!
BECAUSE , LIFE IS A CINEMA ...
WHICH IS DIRECTED BY GOD ...?
WE CAN'T CREATE NEW THINGS
BEYOND THE LIMIT OF SENSES ...
WE CAN’T DENIAL HIS POWER ...
IT IS THE LANGUAGE OF SOUL ...
IT IS THE NATURE OF SOUL ...
WHICH IS MADE BY GOD ...........?
************ विक्रम चौधरी *************