Sunday, August 5, 2012

" ख़्वाहिश ....."

















" ख़्वाहिश ....."

चाट कर दरिया चली ख़्वाहिश पसीना भाँपने ..

काग़ज़ उढ़ा कर फूल को ख़ुशबू का सीना ताकने ..
कट्टीखानों में मवेशी बोझ अपना ढो चले ..
खुल के चरवाहे लगे हैं दुम लगा कर नाँचने ..........!!

पिट गयी बेग़म की बाज़ी इक्क़ा फिर से है तना ..

मजनुओं के हाल सा मैदान में वो भी धुना ..
कौंधी दोपहरी लाल पर माटी का लड्डू वो बना ..
दिल पसीजेगा नहीं कर दो कलेजे को मना ..
लूट है बर्फ़ी अदब की छूत को दे दो पनाह ..
माँ से जा कर कह दो के किलकारी सुनना है गुनाह ..

आग तुम लग जाने दो पानी का अब क्या काम है ..

जलते बुझते जिस्म की आदत में अब आराम है ..
पास है गज़ भर ज़मीं अंतिम वही विश्राम है ..
चटपटे बाज़ार में कत्थे में रगड़ा पान है ..
मुस्कुराती सुर्ख़ होठों से वो अपनी जान है ..
हाथ में तनख्वाह है पूरी और नज़र बेइमान है ..
नाज़ है हमको हमी पर हमसे दश्त -ए- शाम है ..
ग़ैर की क्या है ज़रुरत घर में ही हैवान है ..
गजरों से महकी ज़ुल्फ़ से दिल की बँधी हर डोर है ...
और रात के ढलने तलक जेबों का खाली शोर है .......

उठती उँगली एक है बाक़ी तो अपनी ओर हैं ......

प्यास है इच्छा का प्याला मन बलाकी चोर है ............!!

**************** विक्रम चौधरी *****************

Saturday, July 14, 2012

" अन्धों का राजा ......"






















"  अन्धों  का  राजा ......"

तीखी  सूरत  इश्तेहारी  चाँदनी  कहलाएगी 
वो  सुहानी  शाम  होठों  की  हँसी  ले  जायेगी 
झींगुरों  की  चींख  से  बच्चों  का  दम  घुट  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

चमगादड़ों  और  उल्लुओं  में  युद्ध  होगा  बेपनाह 
जिस्म  उतरी  खाल  होगा  खूं  चखेंगी  तितलियाँ 
आग़ाज़  होगा  रूद्र  का  डमरू  ना  होगा  हाथ  में 
खट्केंगी  घर  की  कुण्डियाँ  होगा  ना  कोई  पास  में  
इश्क़  बिगड़ी  बात  होगा  इस  अँधेरी  रात  में 
सिसकियों  में  हार  होगी  दर्द  की  शुरुआत  में 
आसमां  सूरज  को  ताला  मार  कर  सो  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!  

होंगी  अघोरी  और  फ़क़ीरों  की  दुआएँ  ख़ाक  में 
मन्त्र  होंगे  मैं  चढ़े  ज्ञानी  चबेगा  स्वाद  में 
राम  का  टूटेगा  दर  अल्लाह  छुपेगा  मांद  में 
हैवानियत  रौंधेगी  सर  इन्सानियत  की  आड़  में 
पंछी  भी  अब  सीने  से  लग  कर  जात  अपनी  गायेगा    
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

भोर  भी  इन्सां  को  चकमा  दे  के  झट  छुप  जायेगी 
गुल्लक  भी  सिक्कों  की  जगह  ख़ाबों  के  ख़त  भर  लाएगी 
और  छनेंगी  बादलों  से  रेशमी  हैरानियाँ 
राज़  खोलेंगे  दरीचे  तोड़  कर  ख़ामोशियाँ 
शाख़  ओढ़ेगी  नुकीली  दीमकों  की  टोपियाँ 
ब्राह्मिनों  की  आँख  ढूंढेंगी  सुनहरी  बोटियाँ 
कारवाँ  बदनाम  राहों  पर  कहीं  खो  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

क़ायर  शराबी  होड़  में  कोरी  पहल  कर  जाएगा 
बावरे  मन  की  कथा  सुबह  को  फिर  दोहराएगा
हाँसिल  नहीं  उसको  सबर  पाया  नहीं  उसने  जुनूं
वो  शौक़  में  फ़िर्दौस  की  गुत्थी  फ़क़त  सुलझाएगा 
आया  ना  उसको  चैन  पाकर  रूप  ऐसा  बागवां
वो  ओढ़  सातों  रंग  अपने  रंग  पर  पछतायेगा 
ज़िल्लत  में  निगला  कौर  भी  अटखेलियाँ  कर  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!  

खिलखिलाती  मंद  मुस्कानों  पे  कर  लग  जाएगा 
चील  की  चढ़ती  जवानी  से  मुशक  डर  जाएगा 
खौफ़  खाने  को  महज़  बाक़ी  है  अब  परमात्मा 
आ  गया  ग़र  वो  ज़मीं  पर  खां  म  खां  लुट  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

साथ  ले  कर  चल  रहा  हर  एक  बशर  परछाईयाँ 
उखड़ी  साँसों  में  हैं  शर्मिंदा  पड़ी  गहराईयाँ 
कौन  आ  धमका  ना  जाने  अटपटा  इस  भीड़  में 
जिसकी  ना  परछाई  थी  ना  दूध  था  वो  खीर  में 
बंद  कर  लीं  हमने  आँखें  अब  ना  कुछ  दिख  पायेगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!! 

**************** विक्रम  चौधरी ********************

Friday, June 8, 2012

" होना ना उदास ...."





















" होना  ना  उदास ...."

अहम्  करेगा  नाश 
होगा  ज्ञान  का  मज़ाक 
मंथरा  करेगी  राज 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

चिट्ठियाँ  खुलेंगी  फीकी 
बातें  होंगी  जिसमें  रूखी 
लफ़्ज़  सलवटों  से  होंगे 
होगा  प्रेम  का  विनाश 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

नौकरी  मिलेगी  झूंठी 
पहरेदारी  की  अँगूठी
तनख्वाह  लॉटरी  पे  होगी 
होगा  हौसला  हताश 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

मंज़िलें  दिखेंगी  भूंखी 
राहें  प्यासी  होंगी  खूं  की 
मुद्दा  जीत  का  उठेगा 
होगा  मूहँफटों  सा  दास 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

ख्वाहिशें  बढ़ेंगी  तीखी 
होंगी  कोशिशों  से  भीगी 
क़िस्सा  सरमुंडा  सा  होगा 
होगा  धैर्य  का  भी  हास  
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

अहम्  करेगा  नाश 
होगा  ज्ञान  का  मज़ाक 
मंथरा  करेगी  राज 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!!

*** विक्रम  चौधरी *** 

Sunday, May 27, 2012

" निषेध ......"


















" निषेध ......"
क्या  राजा  क्या  रंक
क्या  साँझा  क्या  जंग
सब  वर्चस्व  की  जद्दोज़हद  है ...!!
क्या  सही  क्या  ग़लत
क्या  उलट  क्या  पलट
सब  वैमनस्यता में  सना शहद  है ...!!
क्या  हिंसा  क्या  अहिंसा
क्या  सुकूं  क्या  चिंता
सब  अधरों  से  उगलता  खेद  है ...!!
क्या  क़ब्र  क्या  चिता
क्या  लिखा  क्या  मिटा
सब  रंगों  में  काला  सफ़ेद  है ...!!
क्या  प्रेत  क्या  बशर
क्या  रात  क्या  सहर
सब  ज़िन्दा  है  ज़िन्दगी  निषेध  है ...!!!!

रंगीन  कूचे  हैं  चौपट  चौबारे   हैं ...
झूठे  से  चूल्हे  है  रोटी  से  हारे  हैं ...
महलों  के  जमघट  ने  रस्ते  सँवारे  हैं ...

क्या  सफ़र  क्या  डगर
क्या  मदद  क्या  नज़र
सब्र  टूटा  है  आरम्भ  निषेध  है ...!!!!!!


********** विक्रम  चौधरी ***********

Thursday, April 19, 2012

" जीवन की आशा ... "

























" जीवन  की  आशा ... "

थोड़ी  चुप्पी  थोड़ा  दिलासा ...
बस  यही  है  जीवन  की  आशा ...
माया  में  मग्न  हुई  है ...
छल  से  छली  निराशा ...
मन  से  थोड़ी  भारी  सी ...
आँख  में  सबके  खारी  सी ...
रिश्तों  की  टोकरी  में  हारी  सी ...
थोड़ी  निराशा  थोड़ी  सी  आशा ... !

खाली  मुट्ठी  मीठा  बताशा ...
बस  यही  है  जीवन  की  आशा ...
ख़ाबों  में  ख़त्म  हुई  है ...
सच  से  धुली  निराशा ...
पेड़  से  टूटी  डाली  सी ...
अफ़सोस  में  लिपटी  गाली  सी ...
भिक्षा  के  भरोसे  की  प्याली  सी ...
थोड़ी  निराशा  थोड़ी  सी  आशा ... !! 

थोड़ी  चुप्पी  थोड़ा  दिलासा ...
बस  यही  है  जीवन  की  आशा ... !!

********** विक्रम  चौधरी *********

Friday, February 24, 2012

" अब जब भी इंसान बनूँ ......"






















अब  जब  भी  इंसान  बनूँ ......"

कभी  आरम्भ  कभी  अंत  कभी  अत्यंत 
कभी  मौन  कभी  शोर  तो  कभी  परब्रह्म 
हर  पल  इसी  धुन  की  उधेड़  बुन  में  रहा ...
कभी  ख़ाली  कभी  भरा  कभी  ख़ुद  से  डरा ...
मैं  हर  पहर  बस  एक  ही  ज़िद  से  मरा ...
कि  अब  जब  भी  इंसान  बनूँ  
तो  फ़क़त  इंसान  ही  रहूँ ...!!    

अभी  मैं  इंसान  के  भेस  में  कुछ  और  हूँ ...
ख्वाहिशों  में  सुलगते  थपेड़ों   का  दौर  हूँ 
कभी  विक्रम  कभी  लेखक  कभी  मूरख ...
बस  इन्हीं  गिरहों  में  उलझा  सा  कौर  हूँ ...
मैं  नहीं  जानता  कि  मैं  कौन  हूँ ...
मग़र  जो  भी  हूँ  इंसान  नहीं  हूँ ...

ना  जाने  कब  ये  दौड़  ख़त्म  होगी ...
और  ना  जाने  कब  मैं  इन्सां  बनूँगा ...

कभी  ख़ुद  से  कभी  दुःख  से  कभी  सुख  से 
कभी  साँस  देती  हवाओं  के  अनदेखे  रुख़  से 
अक्सर  यही  पूछा  करता  हूँ 
एक  क़ायनात  एक  ख़ुदा 
फिर  भी  हर  शख्स  जुदा ...

क्या  रब  से  कहूँ  क्या  सब  से  कहूँ 
क्या  बढ़ती  हुयी  कशमकश  से  कहूँ ...
कि  अब  जब  भी  इंसान  बनूँ  
तो  फ़क़त  इंसान  ही  रहूँ ...!!    
              

!*** विक्रम  चौधरी ***!  

Thursday, February 9, 2012

“ आज ज़िन्दगी ने ….”

























“ आज   ज़िन्दगी   ने  ….”
 
आज  ज़िन्दगी  ने  मुझसे  फिर  से  मुलाक़ात  की …
मानो  एक  बच्चे  की  ख़ता  मैंने  आज  माफ़  की ….
अपने  हाथों  से  लाक़ीरों  के  फ़रमान  उतारे …
मानो  आईने  में  फिर  अपनी  ही  तस्वीर  साफ़  की ....!
 
खट्टा  मीठा  हर  स्वाद  का  नींबू  बड़े  चाव  से  चखा …
पास  खड़े  नीम  की  कड़वाहट  को  भी  अपनी  जीभ  पर  रखा …
पीपल  से  गूलर  गिरे  थे  गिलहरी  के  दाँतों  से  आधे  चबे  थे  …
अमरुद  कच्चे  थे  मग़र  उन  पर  भी  कई  क़िस्म  के  खोंट  पड़े  थे …
 
मैंने  एक  एक  करके  सबकी  झूठन  मूँह  हाथ  की 
मानो  एक  अछूत  को  छू  कर  अपनी  ख़ुदी  पाक़  की ….
 
शाम  हुई  सूरज  ने  अपनी  रुख्सती  का  पैग़ाम  दिया 
चाँद  ने  भी  धीमे  से  झपकी  मार  कर  आग़ाज़  किया  
घर  जाते  वक़्त  रास्ते  में  एक  टूटा  सा  घर  देखा  
खिड़की  से  झाँका  तो  एक  अबला  का  उलझा  सा  सर  देखा   
मैंने  चुपके  से  घर  में  क़दम  रखा  और  पूछा 
तुमने  बच्चों  को  बेचादर  ज़मीन  पर  सुला  रखा  है 
और  ख़ुद  पागलों  की  तरह  चारपाही  पर  जम  कर  बैठी  हो ....
कुछ  देर  चुप  रहने  के  बाद  उसके  लफ़्ज़  निकल  कर  बोले …
एक  को  अफ़ीम  चटा  कर  सुलाया  है 
और  दूसरा  अब  इस  दुनियाँ  में  नहीं  है ….
 
आँख  रोयी  नहीं  बस  अश्क़ों  ने  बहने  की  शुरुआत  की   
मानो  दानव  की  बस्ती  ख़ुद  मैंने  ही  आज  आबाद  की ….
अपनी  खाल  से  अपने  इन्सां  होने  के  सारे  सबूत  उतारे 
मानो  ख़ाली  हो  कर  फिर  से  भरने  की  मैंने  मुराद  की ….
 
कुछ  देर  तक  उस  औरत  और  मेरे  बीच  कोई  बात  नहीं  हुई …
मैंने  एक  एक  करके  घर  की  हर  चीज़  पर  अपनी  निग़ाह  डाली …
कपडे , बर्तन , खाना , खिलौने  जैसा  कुछ  नहीं  था  वहाँ …
दीवारें  सीलन  से  गीली  थीं , हर  कोने  में  मकड़ी  का  जाला  था 
 
मैं  कुछ  ना  कह  सका  ज़ुबान  पर  ताला  सा  पड़  गया  था …
जो  झूठन  मैं  अपने  बच्चों  के  लिए  घर  ले  जा  रहा  था  …
वो  वहीँ  उसकी  चारपाही  पर  रख  कर  मैं  बाहर  आ  गया  …
काल  को  कुछ  ना  मिला  तो  भूख  से  ही  ज़िन्दगी  खा  गया …
 
आज  ज़िन्दगी  ने  फिर  कैसी  यूँ  मुझसे  मुलाक़ात  की 
मानो  किसी  क़त्ल  में   मैंने  भी  शागिर्दी  हयात  की …
पंछी  के  दिल  में  पलते  सारे  ख़यालात  उतारे 
मानो  किसी  नज़्म  की  कीमत  यूँ  मैंने  बरबाद  की ….!!
 
**************** विक्रम  चौधरी ******************