" अन्धों का राजा ......"
वो सुहानी शाम होठों की हँसी ले जायेगी
झींगुरों की चींख से बच्चों का दम घुट जाएगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
चमगादड़ों और उल्लुओं में युद्ध होगा बेपनाह
जिस्म उतरी खाल होगा खूं चखेंगी तितलियाँ
आग़ाज़ होगा रूद्र का डमरू ना होगा हाथ में
खट्केंगी घर की कुण्डियाँ होगा ना कोई पास में
इश्क़ बिगड़ी बात होगा इस अँधेरी रात में
सिसकियों में हार होगी दर्द की शुरुआत में
आसमां सूरज को ताला मार कर सो जाएगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
होंगी अघोरी और फ़क़ीरों की दुआएँ ख़ाक में
मन्त्र होंगे मैं चढ़े ज्ञानी चबेगा स्वाद में
राम का टूटेगा दर अल्लाह छुपेगा मांद में
हैवानियत रौंधेगी सर इन्सानियत की आड़ में
पंछी भी अब सीने से लग कर जात अपनी गायेगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
भोर भी इन्सां को चकमा दे के झट छुप जायेगी
गुल्लक भी सिक्कों की जगह ख़ाबों के ख़त भर लाएगी
और छनेंगी बादलों से रेशमी हैरानियाँ
राज़ खोलेंगे दरीचे तोड़ कर ख़ामोशियाँ
शाख़ ओढ़ेगी नुकीली दीमकों की टोपियाँ
ब्राह्मिनों की आँख ढूंढेंगी सुनहरी बोटियाँ
कारवाँ बदनाम राहों पर कहीं खो जाएगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
क़ायर शराबी होड़ में कोरी पहल कर जाएगा
बावरे मन की कथा सुबह को फिर दोहराएगा
हाँसिल नहीं उसको सबर पाया नहीं उसने जुनूं
वो शौक़ में फ़िर्दौस की गुत्थी फ़क़त सुलझाएगा
आया ना उसको चैन पाकर रूप ऐसा बागवां
वो ओढ़ सातों रंग अपने रंग पर पछतायेगा
ज़िल्लत में निगला कौर भी अटखेलियाँ कर जाएगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
खिलखिलाती मंद मुस्कानों पे कर लग जाएगा
चील की चढ़ती जवानी से मुशक डर जाएगा
खौफ़ खाने को महज़ बाक़ी है अब परमात्मा
आ गया ग़र वो ज़मीं पर खां म खां लुट जाएगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
साथ ले कर चल रहा हर एक बशर परछाईयाँ
उखड़ी साँसों में हैं शर्मिंदा पड़ी गहराईयाँ
कौन आ धमका ना जाने अटपटा इस भीड़ में
जिसकी ना परछाई थी ना दूध था वो खीर में
बंद कर लीं हमने आँखें अब ना कुछ दिख पायेगा
और भूल में अन्धों का राजा तख़्त पर चढ़ जाएगा ....!!
**************** विक्रम चौधरी ********************
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