" जागा रहने दो ....."
कि कई दिनों से सोया हुआ था मैं ..
अब जागा हूँ तो जागा रहने दो ..
फिर नींद ना आ जाए ..
कि फिर रात ना छा जाए ..
इसलिए सूरज को आईने में
बैठा कर साथ ले आया हूँ मैं ..
सिलसिले दर सिलसिले खाल से
हैरानी उतारती मेरी आँखें
मेरे गुज़रे वुजूद के बारे में
जानने की कोशिश में हैं ...
बार बार मुझे कुरेद कर
पिछले क़िस्से सब सहेज कर
मुझे छानने की कोशिश में हैं ..
मग़र इस बार किसी गहरे से जंगल में
उस वुजूद को छोड़ आया हूँ मैं ...
कि अब जागा हूँ तो जागा रहने दो ..
कि कई दिनों से सोया हुआ था मैं ..
नन्ही चिड़िया को मस्ती में उड़ता देख ..
डर जाता था मैं कि कहीं उड़ान ..
बवन्डर का शिकार ना हो जाए ..
उसी को बार बार देख डर जाता था मैं ..
कि कहीं मेरी ख़ुद से हार ना हो जाये ..
छिपकली सा बैठा रहता था एक तस्वीर के पीछे ..
कि कभी कमरे की छत पर उल्टा लटका रहता था ..
और कभी पुराने जूतों में पड़ा रहता था ..
कि कहीं मुझ पर पलट वार ना हो जाए ...
उस काँपती सी ज़िन्दगी से कुछ माँग लाया हूँ मैं ...
अब जागा हूँ तो जागा रहने दो ..
कि कई दिनों से सोया हुआ था मै .....!!
**************** विक्रम चौधरी ********************