“ पत्ता ..”
मुझे शाख से गिरे हुए
अभी कुछ ही दिन हुए हैं ..
रंग थोड़ा सा पीला पड़ गया है ..
मग़र चेहरा भीतर से हरा है अभी ..
मग़र कौन भीतर देखता है ..
जाने दो राज़ को राज़ रहने दो …
जब जिस्म ही अपना ना हुआ तो ,
उम्मीद तुमसे भी क्या लगाऊँ
बस कूड़ा समझ कर मत फैंकना …
मेरे रेशों में अभी भी ज़िन्दगी बाक़ी है …
बड़ी देर बाद आज़ादी मिली है ...
बड़ा सुकून है इस पेड़ के सिराहने …
बैठा रहने दो जब तक उम्मीद हो …
ना जाने कब कौन ठोकर मार दे …..!!
******** विक्रम चौधरी ********
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