" तू जानता नहीं है ..."
सांप है कभी तो सीढ़ियों का मेल है ..
एक तरफ़ है जीत एक तरफ़ है हारी बाज़ी ..
कौन फूँक सा उड़ा है कौन जश्न साज़ी ...
कोई शक्ल से ठगा तो कोई अक्ल से मरा ..
मोहरों की जमात में ये मोहरा क्यों डरा ...
सुखन की टोकरी में सबके मन पसंद शेर हैं ...
कोई हँस के खिल पड़ा किसी पे भारी है पड़ा ...
ये कील की ज़ुबान है ठुकी ठुकी सी चल रही है ...
ये भील की दुकान है रुकी रुकी सी पल रही है ...
तू जानता नहीं है वक़्त खेल है ..
राजा की नक़ल में रंक भेदी मेल है ..
एक तरफ़ है कौल एक तरफ़ है संशय हावी ..
कौन तख़्त पे चढ़ा हुआ है कौन ग़ाज़ी ..
कोई अर्श पे दिखा तो कोई फ़र्श पे गिरा ..
लहरों की हवस ने रौंधा बाँध का सिरा ...
सुखन की टोकरी में सबके मन पसंद शेर हैं ..
कोई हक़ से बिक पड़ा किसी का हक़ ही छीन पड़ा ..
ये मांस का मकान है थका थका सा चल रहा है ...
ये हाल का उफ़ान है उड़ा उड़ा सा पल रहा है ...
तू जानता नहीं है ये वक़्त खेल है ..
शेर के गुटों में भेड़ियों का मेल है ...
बख्शा दांत ने तो हलक़ ने चबा लिया ...
हिस्सा मेरे मूँह का फ़लक ने चुरा लिया ...
मिज़ाज बदला इश्क़ ने हताश कर दिया ...
साँस के महकते दम को ताश कर दिया ...
बिकी है बेशरम खुदी चौराहे पर मेरी ...
उछली कीमतों ने दिल उदास कर दिया ...
एक तरफ़ है भूल एक तरफ़ है कोरी माफ़ी ...
कौन धूप में जला हुआ है कौन हाजी ...
कोई फ़र्द सा लड़ा तो कोई फ़र्क से लड़ा ..
बहरों की मज़ार पर ये क़िस्सा फिर गढ़ा ...
सुखन की टोकरी में सबके मन पसंद शेर हैं ...
कोई मर के जी पड़ा किसी के जी पे ग़म पड़ा ...
ये अम्न का तूफ़ान है डरा डरा सा बढ़ रहा है ...
इन्सां की तपिश के धुंए से ये छिल रहा है ...
तू जानता नहीं है ये वक़्त खेल है ...
सांप है कभी तो सीढ़ियों का मेल है ...
***************** विक्रम चौधरी *********************