" जब आया हूँ ....."
तो हक़ ले कर भी जाऊँगा
हक़ दे कर भी ही जाऊँगा ....
वरना रहने देते मुझे इन
बेबुनियादी तौर तरीकों से दूर ...
समाज और धर्म की मुलायज़ा
फ़रमाती महफ़िलों से दूर ...
ना रखते कोई नाम मेरा
ना बांधते मुझे किसी बंधन में ...
कम से कम एक इंसान तो बना रहता...
अपनी खुदी और अपने खुदा को
अपने तरीक़े से समझा करता ...
ले जाते मुझे इन इंसानी
लिबासों में ढके हसरत मंदों से दूर ...
कम से कम इस धरती का
मैं मेहमान तो बना रहता ...
अब तो लगता है कि
मेहमान कि शक्ल में
एक लुटेरा हूँ मैं ...
और इंसान के भेस में
खौफ़ का बसेरा हूँ मैं ...
जो एक पल भी
ज़ाया नहीं जाने देता
अपनी वहशियत को मुक़ाम देने में ...
चाहता तो कुछ इस तरह हूँ कि अब ..
मेरे घर कि चौखट पर यूँ गन्दगी ना हो ...
मेरे अपनों की जिद्द पर कोई पाबंदगी ना हो ..
मेरे गाँव की हद में कोई दरिंदगी ना हो ..
ना हो मेरी कौम और धर्म पर अत्याचार कोई ..
ना हो मेरे घर की औरतों से दुराचार कोई ..
ना हो मेरे देश की मिट्टी का ख़रीददार अब कोई ..
क्या करूँ मुझे ऐसा ही बनाया गया है ...
ये हक़ मैं अपना ले कर ही जाऊँगा ...
और ना करे कोई मेरी माँ की ममता पे शक़ ...
ना माँगे कोई उससे उसके आँचल का हक़ ...
ये हक़ मैं अपनी माँ को दे कर जाऊँगा ....
मैं जानता हूँ कुछ पाप होंगे मुझसे ..
इस कारवाँ में गुलिस्ताँ कुछ खोएंगे मुझसे ...
ग़लती नहीं है मेरी कि ये सब मेरे ही हाथों से होगा ..
क्या करूँ ये ज़माना ही मिल कर मुझे सब सिखा रहा है ...
वरना रहने देते मुझे आडम्बर कि आदत से दूर ..
रहने देते मुझे पैग़म्बर की चाहत से दूर ...
तो कम से कम मैं एक इन्सान तो बना रहता ....
ना करता यूँ फ़र्क अपनी ही शक्ल से
मिलते - जुलते ज़िक्र - ए - नवाज़ों से ...
ना डरता मैं कायदों की गिरफ़्त में क़ैद
सरहद के उस पार रहने वालों से ...
ना कहता कि जानवर नहीं इन्सां हूँ मैं....
शायद हमसे तो जानवर ही भले ..
जिनमें इतनी समझ नहीं कि
समझ आने पर समझदारों का
हाल ही कुछ बदल जाता है ...
पृथ्वी के मानचित्र पर
एक भूचाल सा उमड़ आता है ...
एक जैसे दिखने वालों में
ये कैसी जंग छिड़ी है ...
कि थाली जो कभी एक थी ..
वो बँटते बँटते अपने ही
चुल्लू में समा गयी है ...
ये एक सी दिखने वाली जाति ...
आज मिल बाँट कर
एक दूसरे का मांस खा रही है ...
मुझे माफ़ करना दोस्तों ...
मैंने भी मांस का एक टुकड़ा खा लिया है ...
निगल नहीं पाया हूँ अभी ..
बस दाँतों के बीच दबा लिया है ...
कि जब आया हूँ ज़माने में
तो मैं भी ख़ूनी कहलाऊँगा ..
हक़ ले कर भी जाऊँगा ...
हक़ दे कर भी जाऊँगा ....
**************** विक्रम चौधरी *******************
1 comment:
waaaaaaaaaahhhhhhh Vikram kya baat hai !!!
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