" कह दो...."
कि मैंने भी अब अपना हुनर ख़ोज लिया है ...
कि अब मैं भी तालियों की गड़गड़ाहट में जीना चाहता हूँ ...
थक गया हूँ अब मैं ये आम सी ज़िन्दगी जी कर ...
दफ़्तर में दम तोड़ती हराम सी ज़िन्दगी जी कर ...
राशन की लम्बी कतार में ग़ुलाम सी ज़िन्दगी जी कर ....
हाँ , मैं थक गया हूँ ...!
खुद अपने आप से सवाल करती ज़िन्दगी जी कर ....
कि अब रात भर सपने आते हैं मुझको ...
कभी कलाकार कभी साहित्यकार
कभी व्यापारी कभी चित्रकार बना कर
रोज़ सुबह नींद से जगाते हैं मुझको ....
मैं बारी बारी से इन सबका रियाज़ करता हूँ ...
अपने आईने में हर क़िरदार का मिजाज़ पड़ता हूँ ...
कि जहां होगा अखबारों और टी.वी. चैनलों का रुख ...
वहाँ वैसा ही क़िरदार मैं बन जाऊंगा ....
कि अब मैं भी डॉलरों कि सरसराहट को छूना चाहता हूँ ...
कि अब मैं भी तालियों कि गड़गड़ाहट में जीना चाहता हूँ ...
कह दो अब उन हुनरमंदों से ..
कि मैंने भी अब अपना हुनर ख़ोज लिया है ...
****************** विक्रम चौधरी ******************************
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