" कसम ....."
खाओ तो क़सम ज़रा
नहीं करेंगे जो किया ...
दिखाओ गहरी धुँध में
धुरंधरों को भी दीया ...!!
खाओ तो क़सम ज़रा
आवाम के उफ़ान की
प्रपंच पे विराम की
घरौंदे में आराम की ...
नहीं करेंगे जो किया
मिल के फ़ैसला करो ...
ज़िन्दगी की माँग में
सिन्दूर केसरी भरो ....
ठिठोलियाँ उबाल दो
महल के रक्तपान की
तिजोरियाँ उछाल दो
नेताओं के मक़ान की ...
जिस्म के जहाज़ में
ना बैठ कर ख़ुदा बनो
हम भी हैं , तुम भी हो
ये कह के या ख़ुदा कहो ...
उजाड़ दो नसल
पढ़े लिखे निक़म्मे आम की
उबार दो फसल
लुटे पिटे असल रूहान की ...
ना देखो अपना फ़ायदा
फ़क़ीर की पुकार में
बदल दो आज क़ायदा
बिको ना अपने आप में ...
खोट वो नहीं जो
मिल गया है तुमको हार में
है बुरा जो मिट गया है
जीत के विचार में ....
क्यों भौंडेपन की तन छिली
आदत से तुम मजबूर हो
क्यों चाँद की शक़ल में
अपनी खोजते तुम हूर हो ....
निर्वस्त्र है इच्छा सुखन की
पर नहीं नंगी है वो ....
कपड़ों में नंगे इस जहां को
देख डर जाती है वो ....
कहती है मुझको तू दिला
ऐसा नया कपड़ा अब कोई ....
देह पर चढ़ कर जो मेरी
फिर कभी फटता ना हो ....
है खेल ये क़ातिल बड़ा
यूँ सबके मुँह औंधा पड़ा
जिसने भी की बातें असल
वो शख़्स ही सूली चढ़ा ....
खाओ तो क़सम ज़रा
नहीं करेंगे जो किया ...
दबा दो क़ब्र में वो सब
दरिंदों ने जो भी दिया ...
खाओ तो क़सम ज़रा
नहीं करेंगे जो किया ....
दिखाओ गहरी धुँध में
धुरंधरों को भी दीया ......२ , २ , २ !!
**** विक्रम चौधरी *****
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