कुछ पल बाक़ी हैं ....
शाम मेरी बाहों में बाहें डाले सवाल करती है ..
अभी रात होने में कुछ पल बाक़ी हैं ...
अभी ख़ाब खुलने में कुछ पल बाक़ी हैं ...
तसव्वुर ना कर रात का ...
सुबह तलक ख़त्म हो जाने वाले ख़ाब का ...
आ कुछ पल हकीक़त के थाम ले ....
आ कुछ और ज़िन्दगी से माँग ले ....
अभी शाम ढलने में कुछ पल बाक़ी हैं ....
एहतेराम कर साक़ी के आख़िरी जाम का ..
पैमाने में बचे ख़ाबों से परे एहसान का ...
कदम दो कदम दूर ही सही ....
अभी चाँद दिखने में कुछ पल बाक़ी हैं ....
हलक़ खोल दो कि बयां कुछ हो जाने दो ..
इरादा मेरे इश्क़ का यूँ ज़ुबां हो जाने दो ..
जिए जाने को अब लम्हे भी नहीं ..
अभी हाथ छूटने में कुछ पल बाक़ी हैं ....
आज़ाद होने कि फ़िराक़ में जिस्म से दूर हुआ ...
क़िस्सा ये सरे राह बाज़ार में मशहूर हुआ ....
मेरी मय्यिअत पे आने को हैं दीवाने कई ...
अभी दफ़्न होने में कुछ पल बाक़ी हैं ................
****************** विक्रम चौधरी ***********************
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