Tuesday, April 1, 2014

" हाँ ... धुआँ उठा है ...."


















" हाँ ... धुआँ  उठा  है ...."

हाँ  धुआँ  उठा  है
लगी  है  आग  मुझमें
जली  है  आँख  दुःख  में
हाँ ... धुआँ  उठा  है  ....
कुछ  ले  के  उठा  है  अपने  साथ ..

हाँ  ...  धुआँ  उठा  है ....!!

मेरे  भीतर  शीशे  का  चेहरा
थोड़ा  धुँधला  थोड़ा  सुनहरा
मार  के  कंकर  तोड़ा  है  मैंने
देता  है  मुझको  धोख़ा  वो  ग़हरा ...!!

मेरी  वो  बूढ़ी  नानी
अब  ना  कहेगी  कहानी
देगी  ना  इमली  वो  खट्टी
होगी  ना  राजा  की  रानी
अब  ना  पतंगों  पे  होंगी
सिवइयों  की  शर्तें  सुहानी ....!!

चले  गए  सब  ले  करके  बस्ते
रोते  बिलखते  बाहें  झटकते
सुना  है  ले  कर  गए  हैं  वो  चूल्हे  भी  अपने  साथ
गुड़  की  डली  साथ  में  सारे  झूले  और  अपने  हाथ
सुना  है  उनमें  से  आधे  ही  घर  को  पहुँचे
आधे  किसी  क़ाफ़िले  ने  रस्ते  में  धर  दबोचे ....!!

शायद  कोई  रास्ता  बंद  होगा  ....
या  फिर  किसी  कूए  में  जिन्द  होगा .....!!

सुना  है  वो  बँट  गया  है  जो  एक  था
जागा  था  मैं  पर  ना  जाने  क्यों  चुप  था ...
जब  हो  रहा  था  बँटवारा  दिलों  का
बाग़  के  फूलों  का  चूहों  के  बिलों  का
खेतों  के  हलों  का  रुख़सार  के  तिलों  का ....!!

जब  हो  रहा  था  बँटवारा
हवा  में  बहती  ख़ुशबू  का
मैं  चुप  था ...................!!

शायद  कोई  रास्ता  बंद  होगा  ....
या  फिर  किसी  कूए  में  जिन्द  होगा .....!!

हाँ ... धुआँ  उठा  है  ....
चुभी  है  बात  मुझमें
बुझी  है  रात  तुझमें
लहू  के  सूख  जाने  तक
क़िस्सा  यूँ  ही  चला  है ...!
हाँ .... धुआँ  उठा  है ........!
कुछ  ले  के  उठा  है  अपने  साथ ...!!


******* विक्रम  चौधरी ********

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