Monday, September 21, 2009

" मोरे मन की हार........."









" मोरे मन की हार........."

मोरे मन की हार से मोरे मन की जीत …
कोरे कंठ की राख पे माटी भई पलीत …

आंसू से आंसू जुड़े नयन भये भयभीत …
छत पे चुघ चुघ बाजरा पंछी ढूंढे प्रीत …
पंख पे त्रिशूल काढे पंछी गावे गीत …
मन मेरा अघोर माँगे भड़के देह सीत …
खुर की नाल टाप छोड़े कोस होवे ढीट …
मेघ सूखी आग फूँके मौत खोवे रीत …

मोरे मन की हार से मोरे मन की जीत …
कोरे कंठ की राख पे माटी भई पलीत …

जगत मिथ्या.... करम मिथ्या.... धरम मिथ्या ....
सांच पे आँच पड़ी रे मौला ....
शर्म मिथ्या.... भरम मिथ्या.... जनम मिथ्या ....
आज पे गाज गिरी रे मौला ....

भोजन में ढूंढे केसर ....
भर मन मन जी इठ्लावे ....
कोयल के संग फिरूं मै ....
घट मन मन तू बहलावे ....

भोज पान बादरी की भूंख पे मसान है .…
भोर छान बावड़ी की धूप खूं कमान है .…

सब्र कर रे सब्र कर....
रे इंसान कुछ सब्र कर....
है धुंध में अटका जहां....
रे इंसान तू सब्र कर....

**************** विक्रम चौधरी ******************

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