मैं कौन हूँ.........?
मैं कौन हूँ …. कौन हूँ मैं ….?
हर रात को रोशन करती हूँ...
हर रोज़ अँधेरे से लड़ती हूँ...
खुद को जला कर
सबकी आँखों का सूनापन दूर करती हूँ …..
मैं कौन हूँ ….कौन हूँ मैं ….?
हर रात को रोशन करती हूँ...
हर रोज़ अँधेरे से लड़ती हूँ...
खुद को जला कर
सबकी आँखों का सूनापन दूर करती हूँ …..
मैं कौन हूँ ….कौन हूँ मैं ….?
किसी परछाई में अपना चेहरा देखती हूँ...
किसी परछाई से अपना चेहरा छुपाती हूँ...
मुझे डर है मै वो नहीं …
मैं कौन हूँ ….कौन हूँ मैं ….?
अपने ही हाथों में एक खिलौना हूँ...
कहीं अपने ही सवालों की उलझन...
दो पल का सुकून हूँ...
कहीं बेचैन दिलों की धड़कन…
मैं कौन हूँ ….कौन हूँ मैं ….?
वक़्त के हाथों से छूटी रेत...
कहीं पास मुस्कुराता कोई अपना सा भेस...
कहीं दूर से कानों में पड़ता कोई सन्देश...
तो कहीं धुएं में बीती एक रात…
मैं कौन हूँ ….कौन हूँ मैं ….?
……शायद यही है ज़िन्दगी का एक अधूरा रूप …
एक जलती हुई लौ …जो आंसुओं में डूबे अरमां
लिए अपने ही भीतर के अँधेरे से लड़ रही है …
पल पल कुछ ख़त्म होने का सा एहसास दिलाती है …
बहुत कुछ चाहती है हमसे ज़िन्दगी ….
मगर दबे लफ्जों की आहट धडकनों तक आ कर दम तोड़ देती है …
एक जलती हुई लौ …जो आंसुओं में डूबे अरमां
लिए अपने ही भीतर के अँधेरे से लड़ रही है …
पल पल कुछ ख़त्म होने का सा एहसास दिलाती है …
बहुत कुछ चाहती है हमसे ज़िन्दगी ….
मगर दबे लफ्जों की आहट धडकनों तक आ कर दम तोड़ देती है …
“ज़िन्दगी …. "
एक बेसबब इत्तेफाक है .. हमारी आँखों का जलता हुआ एक ख्वाब है …
जो सच तो होता है … मगर धुएं की लपटें कभी इसका पीछा नहीं छोड़ती …….”
जो सच तो होता है … मगर धुएं की लपटें कभी इसका पीछा नहीं छोड़ती …….”
“ Life, just like a flower,
Feel its smell………..
Don’t pluck its leaves,
Love it and save it…..”
Feel its smell………..
Don’t pluck its leaves,
Love it and save it…..”
******* विक्रम चौधरी *******
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