" निहारिका " .........!
रात भर चुप चाप चाँद से बातें करती है ..
कभी उसमें बैठी बूढ़ी नानी से
बार बार चरखा कातने को कहती है ..
कभी मूछों वाले आदमी को आँख दिखाती है ...
रात भर ना जाने कैसी कैसी शरारत करती है ...
हमारी " निहारिका " .........!
सुबह की चाय बिस्तर पर ना आये
तो सारा घर सर पर उठा लेती है ...
पाँव ज़मीं पर रखते ही ज़ोर से चींखती है ...
ठंडा पानी जो चुभता है लाडली को ...
इसलिए रूई के बने मोज़े पहन कर
सारे घर में धमाचौकड़ी मचाती है ...
हमारी " निहारिका " ...........!
क़बूतर को मुंह चिढ़ाती है ...
बन्दर को दाँत दिखाती है ...
दादी के सिक्के गिनती है ...
शीशे में शक़ल बनाती है ...
रिक्शे से रेस लगाती है ...
घंटों पेड़ पर झूलती है ...
फूलों से तितली चुनती है ...
काले बादल को देखते ही ...
घर की छत पर कूदती है ...
बारिश में खूब नहाती है ...
बूंदों पे कान लगाती है ...
लहरों सी लहराती है ...
हमारी " निहारिका " ..........!
जब ढल जाता है दिन ...
तो उदास सी हो जाती है ...
घर को लौट रहे पंछी से ...
ना जाने क्या कह आती है ...
खेल सिखाने में भी सब ...
गुड्डे गुड़ियों की काकी है ...
आँगन में छोटा बछड़ा है ...
दिखने में कम ही तगड़ा है ...
उसे रोज़ सुबह टहलाती है ...
जम कर खूब नहलाती है ...
नटखट है शैतान सी है ...
पर ग़ुस्से से डर जाती है ...
हमारी " निहारिका " ..........!
दिन छुपता है उसे दुखता है ...
फिर चंदा मामा की झोली से ...
नए खिलौने माँगती है ...
सपनों में परियाँ देखती है ...
सबको फिर लोरी सुनाती है ...
हमारी " निहारिका " ..........!
सुन बोल नहीं सकती ...
पर इशारों से सब कह जाती है ...
दादी की लोरी कानों तक
आकर उसके रुक जाती है ...
पर होठों को छूते छूते ही ...
गोदी में सो जाती है ...
हमारी " निहारिका " ..........!
" एक सच , जिसे जान बूझ कर
अनदेखा करते हैं हम ,
लफ्ज़ खोले बिना ही
सब समझा जाती है ....
हमारी " निहारिका " ..........!!"
********** विक्रम चौधरी ************
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