" एक ख़त ....."
बहुत दिन हुए बेटा
कोई ख़त नहीं भेजा तुमने
तुम ठीक तो हो वहाँ
कोई बात हो तो बताना
छुपाना नहीं कुछ हमसे
तुम्हारी माँ तुम्हे
बहुत याद करती है
कहती है हमारा छोटू
वहाँ कैसे रहता होगा
वहाँ कैसे रहता होगा
अजनबी शहर अन्जान लोग
उसे कुछ हो ना जाए ...
यहाँ सब ठीक ठाक है
बस तुम अपना ध्यान रखना
हमारी चिंता मत करना
जब काम से छुट्टी मिले
तो एक बार घर पर आना
कई साल हो गए तुम्हे देखा नहीं ...
कह देते हो पापा मैं बड़ा हो गया ...
कि अब एक नाप का जूता
दोनों के पैर में बराबर आता है ...
तुम छलांग जाते हो अब समंदर भी
हमको तो अब चलना भी कहाँ आता है ...
हाँ .. तुमने एक छड़ी दे रखी है
उससे थोड़ा चल लेता हूँ बेटा ....
बस तुम थोड़ा सम्भल कर चलना
तुम्हारे पाँव बहुत नाज़ुक हैं
काँटा चुभा तो दर्द होगा .....!!
" तुम्हारे पापा ..."
सदा सुखी रहो ...
********** विक्रम चौधरी ************
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