" परिंदे ….."
आज एक परिंदे ने मेरे कमरे की अलमारी में
चुपके से एक कोने में अपना घर बना लिया ...
छुप छुप कर देखने लगा कि कहीं मेरी नज़र
उस पर ना पड़ जाए ….
जैसे ही मैं कमरे से बाहर जाता
वो झट से अंदर की ओर उड़ आता
और फिर मुझे किसी काम में लगा देख
धीरे धीरे अपने घौंसले के लिए
तिनके चुनने में जुट जाता …
उसे नहीं पता कि मैं सब जानता हूँ
उसकी हर हरक़त पर नज़र रखता हूँ …
वो भी क्या करे बेचारा , दिन भर
मुझसे नज़र बचाये फिरता है ,
अपने बच्चों का ख़याल जो रख रहा है वो …
रोज़ शाम होते ही बस
गुटर गूं गुटर गूं की आवाज़ आती है ..
बड़ी हल्की सी आहट से वो अपने नन्हे
से बच्चों के मूँह में दाना डालता है …
बड़ा ही सुकून मिलता है उस परिंदे को देख कर ….
अपने जवानी के दिन याद आ जाते हैं ….
जब राहुल दो साल का था तो कैसे
मेरे हाथ से रोटी छुड़ा कर खा जाता था …
कभी पीठ पर चढ़ जाता
कभी लात घूँसों से मारता
उसके छोटे छोटे हाथों की ख़ुशबू
अभी तक मेरे सीने से आती है …
उसके सारे छोटे कपड़े सुधा ने
सम्भाल कर रखे हैं …
कहती है जब राहुल को बेटा होगा तो
उसे दिखाऊँगी उसके पापा के कपड़े …
बड़ी हँसी आती है उसकी बात सुन कर …
पर वो भी क्या करे माँ है ना ,…
माँ का दिल होता ही ऐसा है ,…
बच्चे की एक एक चीज़ उसे अपनी
जान से भी ज़्यादा प्यारी होती है ....
भले ही मुझे खाना देने में देरी हो जाए
मग़र राहुल के कमरे को
सँवारने में कभी देर नहीं करती वो ..…
रात भर चहचहाने की आवाज़ कानो को
बड़ी सुरीली लगती है मानो राहुल गुनगुना रहा हो …
अरे … मैं भी किन बातों में लग गया ..
आप लोग परेशान ना हों …
आज परिंदों का नाश्ता मैं ही बनाऊँगा ..
अब यहाँ तो कोई है नहीं जिसका मैं
ख़याल रख सकूँ …
मेरा एक नन्हा सा बच्चा था
जो अब बड़ा हो गया है .....
इस घर में उसका मन नहीं लगता
अब एक बड़े घर में रहता है वो …
हाँ , सही भी है
हम बुड्ढे बुढ़िया के साथ
भी बेचारा कब तक माथा मारता …
ये छोटा सा घर उसके बड़े बड़े
सपनों के सामने सिमट जाता था ….
चलो कहीं तो अपना सपना पूरा कर रहा है
बस वो खुश रहे .. यही दुआ करता हूँ …
मग़र ... ये परिंदे मेरा खूब मन लगाते हैं ..
बस डरते हैं मुझसे कि मैं उन्हें भगा ना दूँ …
पर मैं भी बहुत चालाक हूँ ...
उनके किसी काम के आड़े नहीं आता ..
चाहे जितनी भी गन्दगी हो कूड़ा हो …
सुबह तड़के ही सब साफ़ करके
छत पर दाने बिखेर आता हूँ …
धीरे धीरे अब और भी परिंदों ने
आना शुरू कर दिया है …
बस यही सोचा करता करता हूँ ...
कि ये घर खाली ना रहे
काटने को दौड़ता है खाली मकान …
जब वो आये तो उसे लगे
कि पापा मम्मी ख़ुश हैं ..
उनके पास कोई तो है
जिससे उनका मन लगा रहता है …!!
आज एक परिंदे ने मेरे कमरे की अलमारी में
चुपके से एक कोने में अपना घर बना लिया ...
छुप छुप कर देखने लगा कि कहीं मेरी नज़र
उस पर ना पड़ जाए ….
जैसे ही मैं कमरे से बाहर जाता
वो झट से अंदर की ओर उड़ आता
और फिर मुझे किसी काम में लगा देख
धीरे धीरे अपने घौंसले के लिए
तिनके चुनने में जुट जाता …
उसे नहीं पता कि मैं सब जानता हूँ
उसकी हर हरक़त पर नज़र रखता हूँ …
वो भी क्या करे बेचारा , दिन भर
मुझसे नज़र बचाये फिरता है ,
अपने बच्चों का ख़याल जो रख रहा है वो …
रोज़ शाम होते ही बस
गुटर गूं गुटर गूं की आवाज़ आती है ..
बड़ी हल्की सी आहट से वो अपने नन्हे
से बच्चों के मूँह में दाना डालता है …
बड़ा ही सुकून मिलता है उस परिंदे को देख कर ….
अपने जवानी के दिन याद आ जाते हैं ….
जब राहुल दो साल का था तो कैसे
मेरे हाथ से रोटी छुड़ा कर खा जाता था …
कभी पीठ पर चढ़ जाता
कभी लात घूँसों से मारता
उसके छोटे छोटे हाथों की ख़ुशबू
अभी तक मेरे सीने से आती है …
उसके सारे छोटे कपड़े सुधा ने
सम्भाल कर रखे हैं …
कहती है जब राहुल को बेटा होगा तो
उसे दिखाऊँगी उसके पापा के कपड़े …
बड़ी हँसी आती है उसकी बात सुन कर …
पर वो भी क्या करे माँ है ना ,…
माँ का दिल होता ही ऐसा है ,…
बच्चे की एक एक चीज़ उसे अपनी
जान से भी ज़्यादा प्यारी होती है ....
भले ही मुझे खाना देने में देरी हो जाए
मग़र राहुल के कमरे को
सँवारने में कभी देर नहीं करती वो ..…
रात भर चहचहाने की आवाज़ कानो को
बड़ी सुरीली लगती है मानो राहुल गुनगुना रहा हो …
अरे … मैं भी किन बातों में लग गया ..
आप लोग परेशान ना हों …
आज परिंदों का नाश्ता मैं ही बनाऊँगा ..
अब यहाँ तो कोई है नहीं जिसका मैं
ख़याल रख सकूँ …
मेरा एक नन्हा सा बच्चा था
जो अब बड़ा हो गया है .....
इस घर में उसका मन नहीं लगता
अब एक बड़े घर में रहता है वो …
हाँ , सही भी है
हम बुड्ढे बुढ़िया के साथ
भी बेचारा कब तक माथा मारता …
ये छोटा सा घर उसके बड़े बड़े
सपनों के सामने सिमट जाता था ….
चलो कहीं तो अपना सपना पूरा कर रहा है
बस वो खुश रहे .. यही दुआ करता हूँ …
मग़र ... ये परिंदे मेरा खूब मन लगाते हैं ..
बस डरते हैं मुझसे कि मैं उन्हें भगा ना दूँ …
पर मैं भी बहुत चालाक हूँ ...
उनके किसी काम के आड़े नहीं आता ..
चाहे जितनी भी गन्दगी हो कूड़ा हो …
सुबह तड़के ही सब साफ़ करके
छत पर दाने बिखेर आता हूँ …
धीरे धीरे अब और भी परिंदों ने
आना शुरू कर दिया है …
बस यही सोचा करता करता हूँ ...
कि ये घर खाली ना रहे
काटने को दौड़ता है खाली मकान …
जब वो आये तो उसे लगे
कि पापा मम्मी ख़ुश हैं ..
उनके पास कोई तो है
जिससे उनका मन लगा रहता है …!!
*********** विक्रम चौधरी *************
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